कारक किसे कहते है? –
परिभाषा – वाक्य में जिस शब्द का संबंध क्रिया से होता है उसे कारक कहा जाता है। यह सामान्यत : स्वतंत्र होते है लेकिन सामान्य रूप से यह संज्ञा या सर्वनाम का संबंध वाक्य के अन्य पदों से दर्शाते है।
जिस स्थान पर कारक लगा होता है, उस स्थान पर पदों को विभक्त होने के स्वतंत्र छोडा जाता है। इसलिये इन्हें विभक्ति कहा जाता है। कारक को बाद में जुड़ने वाले शब्द भी कहा जाता है। जो शब्द बाद में जुड़ते है उन्हें प्रत्यय कहा जाता है। प्रत्यय के विकसित रूप को परसर्ग कहा जाता है।
कारक कितने प्रकार के होते है –
हिंदी में आठ कारक माने गये है जबकि संस्कृत में छ: कारक माने गये है, क्योंकि संस्कृत में संबंध और संबोधन को कारक नहीं माना गया है। जिनका क्रिया से कोई संबंध नही रहता है। कारकों की विभक्तियों के नाम और उनके कारक चिन्ह होते है। इन कारक चिन्हों की सहायता से वाक्य के पदों में क्रिया, कर्ता, कर्म का संबंध स्पष्ट होता है।
कारकों के नाम और विभक्तियां इस प्रकार है –
(1) कर्ता कारक – इसे प्रथमा विभक्ति कहा जाता है। इसका विभक्ति बोधक चिन्ह ‘ने’ और अल्पविराम होता है। यह दोनों चिन्ह कर्ता के साथ प्रयोग किये जाते है। इसलिये इन कारकों को कर्ता कारक कहा जाता है वाक्य में जिस द्वारा काम करने का बोध होता है उसे कर्ता कहा जाता है।
जैसे – राम ने श्याम को मारा।
इस वाक्य में राम के द्वारा कार्य किया गया है इसलिये राम कर्ता है और राम को वाक्य के अन्य पदों से जोडने के लिये ‘ने‘ कारक का प्रयोग किया गया है, जो एक कर्ता कारक है। यह कारक कर्ता के बाद आता है। इसलिये यह कर्ता के बाद आता है। ‘ने‘ विभक्ति से कर्ता की पहचान की जाती है।
जैसे – राम ने रावण को वाण ने रावण को बाण से मारा।
इस वाक्य में –
किसने मारा – राम ने
किसको मारा – रावण को
किससे मारा – बाण से
यहाँ पर कर्ता और कारक और करण कारक की विभक्ति का बोध होता है।
कर्ता कारक (‘ने’) के प्रयोग के कुछ नियम होते है –
(1) ‘ने’ का प्रयोग तिर्यक संज्ञाओं और सर्वनामों के बाद होता है। जैसे – राम ने, लड़कों ने, मैंने, तुमने, आपने, उसने, आदि।
(2) ‘ने’ का प्रयोग कर्ता के साथ तब होता है। जब क्रिया सकर्मक हो और काल भूतकाल हो। जैसे- राम ने पुस्तक पढ़ी।
बालक ने पुस्तक पढ़ी होती तो उत्तर ठीक होता।
बालक ने पुस्तक पढ़ी होगी।
बालक ने पुस्तक पढ़ी है।
(3) अकर्मक क्रिया के साथ ‘ने’ का प्रयोग नहीं होता है लेकिन कुछ अपवाद स्वरूप अकर्मक क्रिया के साथ ने का प्रयोग किया जाता है। जैसे – मैंने छींका। छींकना, नहाना, थूकना,
(4) जब अकर्मक क्रिया को सकर्मक बनाकर प्रयोग किया जाये तो ‘ने’ का प्रयाग किया जा सकता है। जैसे – उसने अच्छा गाया।
(5) सकर्मक क्रियाओं में वर्तमान और भविष्यकाल में ‘ने’ का प्रयोग नहीं होता है। जैसे – राम रोटी खायेगा।, मैं चाय पीता हूँ।
(6) जिन वाक्यों में बकना, लाना, भूलना, चुकाना, आदि सहायक क्रियायें आती है तो उसमें ‘ने’ का प्रयोग नहीं होता है। जैसे – मैं लिखना भूल गया, मैं साईकल नही लाया। वह नहीं बोला। वह पुस्तक पढ़ चुका।
उदाहरण –
(1) राम ने सोहन से किताब ली।
(2) हम ने अपना काम कर लिया है।
इस प्रकार हम कह सकते है कि कर्ता कारक निर्धारित होता है।
कर्मकारक – वाक्य में क्रिया का प्रभाव या फल जिस शब्द पर पड़ता है, उसे कर्म कहते है। यह वाक्य में द्वितीया विभक्ति के द्वारा अलग होता है इसलिये इसे द्वितीया कारक कहते है। वे कारक जिससे कर्म को अन्य पदों से जोडा जाये। उसे कर्म कारक कहा जाता है। कर्म कारक कर्म के बाद आने वाला पर सर्ग है। इसे परम प्रत्यय भी कहा जाता है। जैसे – राम ने श्याम को मारा। – इस वाक्य में – किसको मारा – श्याम को। इससे स्पष्ट होता है। ‘को’ विभक्ति द्वारा कर्म पद को अलग किया गया है। इसलिये यह विभक्ति कर्म कारक है।
कर्म कारक विभक्ति – को, ए, ऍं
कर्मकारक के नियम –
(1) कर्म कारक ‘को’ का प्रयोग चेतन या सजीव कर्म के साथ होता है जैसे – श्याम ने गीता को पत्र लिखा।
राम ने श्याम को पुस्तक दी।
पापा ने पुत्र को बुलाया।
गुरू ने शिष्य को शिक्षा दी।
इन सभी उदाहरणों से प्रतीत होता है कि कर्म के बाद ‘को’ कारक का प्रयोग किया गया है। यहां पर सभी कर्म सजीव या चेतन है।
(2) दिन, तिथी, समय को प्रकट करने के लिये ‘को‘ का प्रयोग किया जाता है। जैसे –
श्याम सोमवार को लखनऊ आयेगा।
15 अगस्त को दिल्ली चलेंगे।
रविवार को विद्यालय बंद रहेंगे।
इन सभी उदाहरणेां से पता चलता है कि हम अपने तिथी या समय के लिये कर्म कारक विभक्ति का प्रयोग करते है । इसलिये शब्द निर्जीव और अचेतन है।
(3) जब विशेषण का प्रयोग संज्ञा के रूप में कर्म कारक की भांति होता है। तब उसके साथ को का प्रयोग किया जाता है । जैसे – बुरों को कोई नही चाहता ।
भूखों को भोजन कराओं।
(4) अचेतन और निर्जीव कर्म के साथ ‘को‘ का प्रयोग नहीं होता है। जैसे – फूल मत तोड़ो।
करण कारक – कारण का अर्थ है – ‘साधन’ । संज्ञा का वह रूप जिससे किसी साधन का बोध हो, उसे करणकारक कहा जाता है। जैसे – शिकारी ने शेर को बंदूक से मारा – इस वाक्य में – शिकारी ने शेर को किससे मारा – बंदूक से मारा । अत्: स्पष्ट है कि बंदूक एक माध्यम या साधन है । जिसके द्वारा कार्य को किया गया है इसलिये बंदूक को करण कारक हुआ –।
करण कारक के चिन्ह—- से , के द्वारा , के कारण , के साथ , के बिना आदि होतें है । जिलका प्रयोग निम्न स्थितियों में किया जाता है ।
(1) साधन के अर्थ मे करण कारक का प्रयोग होता है। जैसे –
मैंने गुरूजी से प्रश्न पूछा।
उसने तलवार से शस्त्रू को मार डाला।
गीता तूलिका से चित्र बनाती है
(2) प्यार, मैत्री, बैर, उत्पत्ति सूचक अर्थ – मूल्य या भाव, आदि के लिये करण कारक का प्रयोग किया जाता है। जैसे –
आजकल आलू किस भाव से बिक रहा है।
राम की रावण से शस्त्रुता है।
लोभ से क्षोभ उत्पन्न होता है।
कोयला खान से निकलता है।
संप्रदान कारक :- जिसके लिये कुछ किया जाये या जिसको कुछ दिया जाये। इसका बोध कराने वाले शब्द को सम्प्रदान कारक कहते है। जैसे – उसने विद्यार्थी पुस्तक दी। इसका चिन्ह ‘को‘ है। जिसमें विद्यार्थी संप्रदान है।
विभक्ति चिन्हं – को, के लिये, एं, ऍं,
को , विभक्ति संप्रदान कारक और कर्म कारक दोनों की विभक्ति है । लेकिन इनके अर्थो में अंतर है । जैसे –
सुनील अनिल को मारता है। – कर्म कारक
सुनील अनिल को रूपये देता है। – संप्रदान कारक
मां ने बच्चों को खेलते देख। – कर्म कारक
मां ने बच्चों केा खिलौने खरीदे। – संप्रदानक कारक
उस लडके केा बुलाया। – कर्म कारक
उसने लडके को मिठाईंयां दी। – संप्रदान कारक
इससे स्पष्ट है कि जिसके लिये कोई क्रिया संपन्न की जाये उसे संप्रदान कारक कहा जाता है ।
संप्रदान कारक के नियम
(1) किसी वस्तु के दिये जाने के आर्थ् में को , के लिये , के वास्ते का प्रयोग होता है । जैसे –
उमेश केा पुस्तक दो।
अतिथि के लिये चाय लाओ।
बाढ पीडितों के वास्ते चंदा दीजिये।
भोला को बाजार जाने के लिये साईकल चाहिये।
(2) निमित्त प्रकट करने के लिये संप्रदान कारक का प्रयोग किया जाता है।
(3) अवधि का निर्देश देने के लिये संप्रदान कारक का प्रयोग होता है । जैसे – वह चार माह के लिये देहरादून जायेगा।
वे पंद्रह दिन के लिये लखनऊ जायेगें।
मुझे दो दिन के लिये मोटर साईकिल चाहिये।
(4) चाहिऐ शब्द के साथ संप्रदान कारक का प्रयोग किया जाता है। जैसे – मजदूरों को मजदूरी चाहिये ।
छात्रों के लिये पुस्तक चाहिये।
बच्चों के वास्ते मिठाई चाहिये।
अपाधान कारक – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से दूर होने, निकलने, डरने, रक्षा करने, विद्या सीखने तुलना करने का भाव प्रकट होता है। उसे अपादान कारक कहा जाता है। इसका चिन्ह ‘से’ होता है। जैसे – में अल्मोडा से आया हँ।
मैं जोशी जी से आशुलिपी सीखता हूँ।
आपने मुझे हानि से बचाया।
अकिंत ममता से छोटा है।
हिरन शेर से डरता है।
पेड़ से पत्ते गिरते है।
सम्बन्ध कारक – संज्ञा या सवर्नाम के जिस रूप से किसी अन्य शब्द के साथ संबंध या लगाव प्रतीत होता है। उसे संबंध कारक कहते है। संबंध करक में विभक्ति सदैव लगाई जाती है। इसके नियम निम्न है –
विभक्ति चिन्ह – का, की, रे, रा, री, ना, नी, ने,
सम्बन्ध कारक के नियम
(1) एक संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से किसी अन्य शब्द या संज्ञा या सर्वनाम से संबंध प्रदर्शित करने के लिये संबंध कारक का प्रयोग किया जाता है । जैसे –
अनीता सुरेस की बहन है।
अनिल अजय का भाई है।
सुरेन्द्र बीरेंद्र का दोस्त है।
(2) स्वामित्व और अधिकार प्रकट करने के लिये संबंध कारक का प्रयोग किया जाता है। जैसे –
आप किसी की अज्ञा से आये।
नेताजी का लड़का बदमाश है।
यह उमेश की कलम है।
(3) कृतत्व प्रकट करने के लिये संबंध कारक का प्रयोग होता है ।
प्रेमचंद्र के उपन्यास , चिनाव की कहानियां , कबीर दास के दोहे , मैथली शरण गुप्ता का साकेत आदि
(4) परिमाण प्रकट करने के लिये संबंध कारक का प्रयोग किया जाता है । जैसे – पांच मीटर की पहाडी , चार पदों की कविता
(5) मोल भाव करने के लिये संबंध कारक का प्रयोग किया जाता है । जैसे – बीस रूपये के आलू, पचास रूपये के संतरा,
(6) निमार्ण का साधन प्रस्तुत करने के लिये संबध कारक का प्रयेाग किया जाता है । जैसे – ईंटो का मकान, चमडे का जूता ,
(7) सर्वनाम की स्थिति में संबंध कारक का प्रयोग किया जाता है । जैसे – मेरी पुस्तक, तुम्हारा पत्र, मेरे दोस्त,
अधिकरण कारक – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया का आधार सूचित होता है, उसे अधिकरण कारक कहा जाता है। इसके कारक चिन्ह – में, पर, होता है। इसके नियम निम्न है –
(1) स्थान, समय, भीतर, तुलना मूल्य, अंतर, आदि का बोध कराने के लिये अधिकरण कारक का प्रयोग किया जाता है। जैसे उमेश लंदन मे पढता है ।
पुस्तक मेज पर है।
उसके हाथ में कलम है।
ठीक समय पर आ जाना।
वह तीन दिन में आयेगा।
कमल सभी फूलों से सुंदरत्म है।
यह कलम पांच रूपये में मिलता है।
कुछ सांसद चार करोण में बिक गये।
गरीब और अमीर मे बहुत अंतर है।
छोटी सी बात पर मत लडो।
सारा दिन ताश खेलने में बीत गया।
संबोधन कारक – संज्ञा के जिस रूप से किसी को पुकारने, चेतावनी देने, या संबोधित करने, का बोध होता है। उसे संबोधन कारक कहा जाता है। संबोधन कारक की कोई विभक्ति नहीं होती है । इसे प्रकट करने के लिये है’ , अरे , अजी , रे आदि का प्रयोग किया जाता है।
जैसे – है राम ! रक्षा करो।
अरे मुर्ख ! सँभल जाओ।
करण कारक और अपादान कारक में अंतर – करण और अपाधान करक दोनों में ‘से‘ विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। किंतु इन दोनों में मूल भूत अंतर है। करण क्रिया का साधन या उपकरण है। कर्ता कार्य संपन्न करने के लिये जिस उपकरण का प्रयोग किया जाता है। उसे करण कहते है।
कारकों की पहचान –
कर्ता – क्रिया को करने वाला
कर्म — क्रिया से प्रभावित होने वाला
करण – जिसके लिये कोई क्रिय संपन्न की जाये
अपाधान – अलगांव का भाव बताने के लिये
संबंध – जहां दो पदों का संबंध बताया जाये ।
अधिकरण – जो क्रिया के आधार का बोध कराये
संबोधन – किसी को पुकार कर सम्बोधित किया जाये ।
कारकों का शुद्ध प्रयोग –
तेरे को कहां जाना है – गलत
तुझे कहां जाना है – सही
वह घोडे के ऊपर बैठा है। – गलत
वह घोडे पर बैठा है। – सही
लडका मिठाई को रोता है – गलत
लडका मिठाई के लिये रोता है – सही
में पत्र लिखने को बैठा। – गलत
में पत्र लिखने के लिये बैठा। – सही
मैंने आज पटना जाना है। – गलत
मुझे आज पटना जाना है। – सही
तुम्हारे से कोई काम नही हो सकता है। – गलत
तमसे कोई काम नही हो सकता है। – सही
सीता से जा कर के कह देना – गलत
सीता से जा कर कह देना। – सही