Atishyokti alankar ki paribhasha udaharan sahit
अतिश्योक्ति अलंकार किसे कहते है?
अतिशयोक्ति अलंकार की परिभाषा – अतिशयोक्ति शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – अतिशय+उक्ति | ‘अतिशय’ मतलब बहुत अधिक और ‘उक्ति‘ मतलब कह दिया अर्थात जब कोई बात बहुत बढ़ा चढ़ाकर या लोकसीमा का उल्लंघन करके कही जाए, तब वहाँ अतिश्योक्ति अलंकार होता है। अथवा
काव्य में जब किसी वस्तु, व्यक्ति, या रूप सौंदर्य आदि के गुणों का वर्णन लोकसीमा से बहुत बढ़ा- चढ़ा कर प्रस्तुत किया जाए, तब वहां पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
इस बात को इस उदाहरण से स्पष्ट किया जा सकता
जैसे – “देख सुदामा की दीन दशा करुणा करके करुणानिधि रोए, पानी परात को हाथ छुयो नहिं नैनन के जल सों पग धोए।”
अब बात स्पष्ट है कि पानी और बर्तन (परात) को छुए बिना कोई भी किसी के पैर नहीं धो सकता है क्योकि मनुष्य की आँखों से इतना जल नहीं निकल सकता। ऐसा करना बिलकुल असंभव है…….लेकिन सुदामा और कृष्ण की बहुत ही गहरी मित्रता और प्रेम को व्यक्त करने के लिए ऐसा कहा गया।
जब ऐसी कोई बात कही जाती कि हमें ऐसा लगता कि यह बात तो संभव ही नहीं है, और फिर भी ऐसा कहा है इसका आशय यह हुआ की बात कुछ ज्यादा ही बढ़ाचढ़ाकर कही गयी है, तब ऐसी बातों या कविताओं या उदाहरणों में अतिश्योक्ति अलंकार होता है।
निम्नलिखित अतिशयोक्ति अलंकार के उदाहरण को पढ़ो और निष्कर्ष निकालो, जो बात कही है क्या वो संभव है – दिए गए सभी अतिशयोक्ति अलंकार उदाहरण विभिन्न स्त्रोतों से लिए गए है।
अतिश्योक्ति अलंकार के 20 उदाहरण –
Atishyokti alankar ke udaharan निम्नलिखित है –
- हनुमान की पूंछ में लगन न पायी आगि, लंका सिगरी जल गई, गए निशाचर भाग।।
- वह शेर इधर गांडीव गुण से भिन्न जैसे ही हुआ, धड़ से जयद्रथ का उधर सिर छिन्न वैसे ही हुआ।।
- देख लो साकेत नगरी है यही, स्वर्ग से मिलने गगन जा रही है।.
- संदेसनि मधुवन-कूप भरे।
- लहरें ब्योम चूमती उठती।
- परवल पाक फाट हिय गोहूँ।
- जोजन भर तेहि बदनु पसारा, कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा||
- मै तो राम विरह की मारी, मोरी मुंदरी हो गयी कंगना |
- बालों को खोलकर मत चला करो, दिन में रास्ता भूल जायेगा सूरज।।
- बांधा था विधु को किसने इन काली जंजीरों से? मणि वाले फणियों का मुख क्यों भरा हुआ हीरो से?
- युद्ध में अर्जुन ने तीरों की ऐसी बौछार की, कि सूरज छुप गया और धरती पे अँधेरा छा गया |
- एक दिन मैंने ऐसी पतंग उड़ाई ,ऐसी ऊंची पतंग उड़ाई ,उड़ते-उड़ते वह देव लोक में पहुंच गई !
- कल मेरे पड़ोस वाली गली में २ परिवार में लड़ाई हो गयी और वहां खून कि नदिया बह गयीं |
- आगे नदिया पड़ी अपार घोड़ा कैसे उतरे उस पार, राणा ने सोचा इस पार तब तक चेतक था उस पार।।
- भूप सहस दस एकहिं बारा। लगे उठावन टरत न टारा।।
- रावण में सौ हाथियों का बल था |
- राणा प्रताप के घोड़े से पड़ गया हवा का पाला था।
- कढ़त साथ ही म्यान तें, असि रिपु तन ते प्रान।
- उसकी चीख से मेरे कान फट गए |
- चंचला स्नान कर आये, चन्द्रिका पर्व में जैसे, उस पावन तन की शोभा, आलोक मधुर थी ऐसे।।
Atishyokti Alankar ke 10 Udaharan –
और अतिशयोक्ति अलंकार के 10 उदाहरण नीचे दिए है –
1.संधानेउ प्रभु बिसिख कराला, उठी उदधि उर अंतर ज्वाला ||
2. कढ़त साथ ही म्यान तें, असि रिपु तन तें प्राण।
3. पत्रा ही तिथि पाइए, वा घर के चहुँ पास।
नित प्रति पून्यौई रहत, आनन ओप उजास।।
4. मैं रोया परदेस में, भीगा माँ का प्यार.दुःख ने दुःख से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार।
5. चाँदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल,
एक तू ही धनवान है गोरी बाकी सब कंगाल।।
6. जिस वीरता से शत्रुओं का सामना उसने किया।
असमर्थ हो उसके कथन में मौन वाणी ने लिया
7. धनुष उठाया ज्यों ही उसने, और चढ़ाया उस पर बाण |
धरा–सिन्धु नभ काँपे सहसा, विकल हुए जीवों के प्राण।
8. मैं बरजी कैबार तू, इतकत लेती करौंट। पंखुरी लगे गुलाब की, परि है गात खरौंट।
9. दादुर धुनि चहुँ दिशा सुहाई। बेद पढ़हिं जनु बटु समुदाई ।।
10. व्योम को छूते हुए दुर्गम पहाड़ों के शिखर
वे घने जंगल जहाँ रहता है तम आठों पहर।।
11. बाण नहीं पहुंचे शरीर तक, शत्रु गिरे पहले ही भू पर।
12. औषधालय अयोध्या में बने तो थे सही। किन्तु उनमें रोगियों का नाम तक ना था।।
अतिश्योक्ति अलंकार की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए?
काव्य में जब किसी वस्तु, व्यक्ति, या रूप सौंदर्य आदि के गुणों का वर्णन लोकसीमा से बहुत बढ़ा- चढ़ा कर प्रस्तुत किया जाए, तब वहां पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
उदाहरण – बालों को खोलकर मत चला करो, दिन में रास्ता भूल जायेगा सूरज।।
अतिशयोक्ति अलंकार किसे कहते है?
तिशयोक्ति शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – अतिशय+उक्ति | ‘अतिशय’ मतलब बहुत अधिक और ‘उक्ति‘ मतलब कह दिया अर्थात जब कोई बात बहुत बढ़ा चढ़ाकर या लोकसीमा का उल्लंघन करके कही जाए, तब वहाँ अतिश्योक्ति अलंकार होता है।
अतिश्योक्ति अलंकार के उदाहरण बताइये?
1.हनुमान की पूंछ में लगन न पायी आगि, लंका सिगरी जल गई, गए निशाचर भाग।।
2.वह शेर इधर गांडीव गुण से भिन्न जैसे ही हुआ, धड़ से जयद्रथ का उधर सिर छिन्न वैसे ही हुआ।।
3.देख लो साकेत नगरी है यही, स्वर्ग से मिलने गगन जा रही है।.
4.संदेसनि मधुवन-कूप भरे।
5.जोजन भर तेहि बदनु पसारा, कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा||
6.मै तो राम विरह की मारी, मोरी मुंदरी हो गयी कंगना |
7.आगे नदिया पड़ी अपार घोड़ा कैसे उतरे उस पार, राणा ने सोचा इस पार तब तक चेतक था उस पार।।
8.राणा प्रताप के घोड़े से पड़ गया हवा का पाला था।
9.भूप सहस दस एकहिं बारा। लगे उठावन टरत न टारा।।
10.बाण नहीं पहुंचे शरीर तक, शत्रु गिरे पहले ही भू पर।
आप यह अलंकार भी पढ़ सकते है-
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