उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा एवं 20 उदाहरण | Utpreksha Alankar

Utpreksha alankar ki paribhasha प्रमुख 20 उदाहरण सहित

उत्प्रेक्षा अलंकार किसे कहते है?

उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा – जहाँ उपमेय में उपमान होने की संभावना या कल्पना की जाती है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।

इसके लक्षण है- जनु, मनु, इव, मानो, मनो, मनहुँ, आदि।

पहचान – मनो, मानो, मनु, मनुह, जानो, इव, जनु, जानहु, ज्यों आदि वाचक शब्द अगर किसी अलंकार में आते है तो वह उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।

जैसे – जनु,अशोक अंगार दीन्ह मुद्रिका डारि तब, मानो झूम रहे हैं तरु भी, मंद पवन के झोंकों से।

उत्प्रेक्षा अलंकार के भेद –

उत्प्रेक्षा अलंकार के 3 भेद होते है –
(1) वस्तूत्प्रेक्षा
(2) हेतूत्प्रेक्षा
(3) फलोत्प्रेक्षा

(1) वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार – जहाँ एक वस्तु में दूसरी वस्तु की संभावना की जाये, वहां वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
जैसे – उसका मुख मानो चन्द्रमा है।

(2) हेतूत्प्रेक्षा अलंकार – जब किसी कथन में अवास्तविक कारण को कारण मान लिया जाये तो वहां हेतूत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
जैसे – पिउ से कहेव संदेसड़ा, हे भौरा हे काग।
सो धनि विरही जरिमई तेहिक धुआँ हम लाग”।।

व्याख्या – उपर्युक्त उदाहरण में कौआ और भ्रमर के काले होने वास्तविक कारण विरहिणी के विरहाग्नि में जलकर मरने का धुआं नहीं हो सकता फिर भी उसे कारण माना या है।

(3) फलोत्प्रेक्षा अलंकार – जहाँ अवास्तविक फल को अवास्तविक मान जाए तो वहां फलोत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
जैसे – नायिका के चरणों की समानता प्राप्त करने के लिए कमल जल में तप रहा है।

जैसे – उल्का सी रानी दिशा दीप्ति करती थी।
सब में मानो भव्य-विस्मय और खेद भरती थी।।

उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण

Utpreksha alankar ke udaharan निम्नलिखित है –

1. सोहत ओढ़े पीत पर, स्याम सलोने गात।
मनहु नील मनि सैण पर, आतप परयौ प्रभात।।

2. चमचमात चंचल नयन, बिच घूँघट पट छीन।
मनहु सुरसरिता विचल, जल उछरत जुग मीन।।

3. फूले कास सकल महि छाई।
जनु रसा रितु प्रकट बुढ़ाई।।

4. ले चला मैं तुझे कनक, ज्यों भिक्षुक लेकर स्वर्ण-झनक।

5. चित्रकूट जनु अचल अहेरी।

6. चित्रकूट जनु अचल अहेरी।
व्याख्या – यहाँ चित्रकूट में अहेरी की संभावना व्यक्त की गई है।

7. उस काल मारे क्रोध के, तनु काँपने उसका लगा।
मानो हवा के जोर से, सोता हुआ सागर जगा।।

8. “लट लटकनि मनु मत्त,
मधुपगन माधुरी मधुर पिये|”

9. “अरुन भये कोमल चरन,
भुवि चलबे ते मानु”|

10. कहती हुई यो उत्तरा के, नेत्र जल से भर गए।
हिम के कणों से पूर्ण मानों, हो गए पंकज नए।.

11. “तव पद समता को कमल,
जन सेक्त इक पाँय|”

12. मानो माई धनधन अंतर दामिनि।

13. मनु द्रग फारि अनेक जमुन निरखत ब्रज शोभा।

14. लागति अवध भयावनि भारी।
मानहु काल राति अंधियारी।।

15.केशव का सिंह दहाड़ उठा।
मानो पहाड़ चिंघाड़ उठा।।

उपर्युक्त दिए गए सभी उदाहरण उत्प्रेक्षा अलंकार के है। उत्प्रेक्षा अलंकार को पहचानने के लिए वाचक शब्दों (मनो, मानो, मनु, मनुह, जानो, इव, जनु, जानहु, ज्यों आदि) को याद रखें।

यह भी पढ़ें – पल्लवन किसे कहते है? पल्लवन की प्रमुख विशेषताएं

Utpreksha Alankar FAQ

उत्प्रेक्षा अलंकार किसे कहते है?

जहाँ उपमेय में उपमान होने की संभावना या कल्पना की जाती है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसमें जनु, मनु, मानो, जाने, इव आदि वाचक शब्दों का प्रयोग होता है।

उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा एवं उदाहरण दीजिए?

जहाँ उपमेय में उपमान की संभावना व्यक्त की जाए वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है|
उदाहरण – चमचमात चंचल नयन, बिच घूँघट पट छीन। मनहु सुरसरिता विचल, जल उछरत जुग मीन।।

उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण बताइए?

उस काल मारे क्रोध के, तनु काँपने उसका लगा। मानो हवा के जोर से, सोता हुआ सागर जगा।।
2.”लट लटकनि मनु मत्त, मधुपगन माधुरी मधुर पिये|”
3.चित्रकूट जनु अचल अहेरी।
4.सोहत ओढ़े पीत पर, स्याम सलोने गात। मनहु नील मनि सैण पर, आतप परयौ प्रभात।।
5.जनु,अशोक अंगार दीन्ह मुद्रिका डारि तब, मानो झूम रहे हैं तरु भी, मंद पवन के झोंकों से।

उत्प्रेक्षा अलंकार के कितने भेद होते है?

उत्प्रेक्षा अलंकार के 3 भेद होते है – (1) वस्तूत्प्रेक्षा, (2) हेतूत्प्रेक्षा, (3) फलोत्प्रेक्षा

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