संघ लोक सेवा आयोग, के कार्य, सदस्यों की नियुक्ति और पदावधि

संघ लोक सेवा आयोग ((UPSC – Union Public Service Commission) -यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन, भारत के संविधान द्वारा स्थापित एक संवैधानिक निकाय है जो भारत सरकार के लोकसेवा के पदाधिकारियों की नियुक्ति के लिए परीक्षाओं का संचालन करता है। संविधान के भाग-14 के अंतर्गत अनुच्छेद 315-323 में एक संघीय लोक सेवा आयोग और राज्यों के लिए राज्य लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान है।

संक्षेपाक्षर-  UPSC  यू पी एस सी
स्थापना - अक्टूबर 1, 1926; 94 वर्ष पहले
स्थान - धौलपुर हाउस, शाहजहाँ रोड, नयी दिल्ली 
अध्यक्ष  - प्रदीप कुमार जोशी

संघलोक सेवा आयोग का इतिहास

ईस्ट इंडिया कम्पनी के लिए सिविल सेवकों का नामांकन कम्पनी के निर्देशकों द्वारा किया जाता था और इसके पश्चात उन्हें लंदन के हेलीबरी कॉलेज में प्रशिक्षित कर भारत भेजा जाता था । भारत में, योग्यता आधारित आधुनिक सिविल सेवा की अवधारणा 1854 में ब्रिटिश संसद की प्रवर समिति की लॉर्ड मैकाले की रिपोर्ट के उपरांत साकार हुई । रिपोर्ट में यह संस्तुति की गई थी कि ईस्ट इंडिया कम्पनी की संरक्षण आधारित प्रणाली के स्थान पर प्रतियोगी परीक्षा के द्वारा प्रवेश के साथ योग्यता आधारित स्थायी सिविल सेवा प्रणाली लागू की जानी चाहिए । इसी उद्देश्य से, 1854 में लंदन में सिविल सेवा आयोग की स्थापना की गई तथा प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षाएं 1855 में शुरू की गई । प्रारम्भ में भारतीय सिविल सेवा के लिए परीक्षाओं का आयोजन सिर्फ लंदन में किया जाता था । जिसके लिए अधिकतम आयु 23 वर्ष तथा न्यूनतम आयु 18 वर्ष थी। 

श्री रबिन्द्रनाथ टैगोर के भाई श्री सत्येन्द्रनाथ टैगोर पहले भारतीय थे, जिन्होंने 1864 में, सिविल सेवा परीक्षा में सफलता प्राप्त की ।
 
विश्व युद्ध तथा मान्टेग्यू चैम्सफोर्ड सुधारों के पश्चात ही इस पर सहमति बन सकी। 1922 से भारतीय सिविल सेवा परीक्षा का आयोजन भारत में भी होने लगा, सबसे पहले इलाहाबाद में तथा बाद में फेडरल लोक सेवा आयोग की स्थापना के साथ ही दिल्ली में भी इन परीक्षाओं का आयोजन आरम्भ हुआ। लंदन में हो रही परीक्षा का आयोजन सिविल सेवा आयोग ही कर रहा था। इसी तरह, स्वतंत्रतापूर्व भारतीय (शाही) पुलिस के उच्च पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति सेक्रेटरी ऑफ स्टेट द्वारा प्रतियोगिता परीक्षा के माध्यम से की जाती थी। 
सेवा के लिए प्रथम खुली प्रतियोगिता का आयोजन जून 1893 में इंगलैंड में हुआ तथा 10 श्रेष्ठतम उम्मीदवारों को परीवीक्षाधीन सहायक पुलिस अधीक्षक नियुक्त किया गया। शाही पुलिस में भारतीयों का प्रवेश 1920 के बाद ही आरम्भ हुआ तथा बाद के वर्षों में सेवा हेतु परीक्षाओं का आयोजन इंगलैंड तथा भारत दोनों ही जगह होने लगा । इस्लिंग्टन आयोग तथा ली आयोग की घोषणा तथा सिफारिशों के बावजूद पुलिस सेवा के भारतीयकरण की गति बहुत धीमी थी । 1931 तक, पुलिस अधीक्षकों के कुल पदों के 20% पर ही भारतीय नियुक्त थे। तथापि, सुयोग्य यूरोपियन उम्मीदवारों की अनुपलब्धता के कारण 1939 के बाद से और अधिक भारतीयों को भारतीय पुलिस में नियुक्त किया गया ।
वन सेवा के संबंध में, भारतीय ब्रिटिश सरकार ने 1864 में शाही वन विभाग की शुरूआत की तथा शाही वन विभाग के मामलों के सुनियोजन हेतु, 1867 में शाही वन सेवा का किया गया । 1867 से 1885 तक, शाही वन सेवा के लिए नियुक्त अधिकारियों को फ्रांस तथा जर्मनी में प्रशिक्षित किया गया । 1905 तक, उन्हें लंदन के कूपर्स हिल में प्रशिक्षित किया गया। 1920 में, यह निश्चय किया गया कि शाही वन सेवा के लिए आगामी भरती इंगलैंड तथा भारत में सीधी भरती तथा भारत में प्रांतीय सेवा से पदोन्नति द्वारा की जाएगी । स्वतंत्रता के पश्चात, अखिल भारतीय सेवा अधिनियम 1951 के तहत 1966 में भारतीय वन सेवा की स्थापना की गई।

भारत में लोक सेवा आयोग का उद्गम

भारतीय संवैधानिक सुधारों पर भारत सरकार के 5 मार्च, 1919 की प्रथम विज्ञप्ति में पाया जाता है जिसमें एक ऐसे स्थाई कार्यालय की स्थापना करने की आवश्यकता का उल्लेख किया गया था जिसे सेवा मामलों के विनियमन का कार्यभार सौंपा जा सके। मुख्यत: सेवा मामलों के विनियमन से प्रभारित निकाय की इस संकल्पना को, कुछ और अधिक व्यावहारिक रूप भारत सरकार अधिनियम, 1919 में मिला। अधिनियम की धारा 96 (सी) में भारत में लोक सेवा आयोग की स्थापना की व्यवस्था है जो "भारत में लोक सेवाओं के लिए भर्ती तथा नियंत्रण संबंधी ऐसे प्रकार्यों को वहन करेगा जो उसे परिषद में सेक्रेटरी ऑफ स्टेट द्वारा निर्दिष्ट नियमावली के अंतर्गत सौंपे जाएंगे।”
भारत सरकार अधिनियम, 1919 के पारित होने के बाद, स्थापित होने वाले निकाय के कार्यों तथा तंत्र को लेकर विभिन्न स्तरों पर लम्बे समय तक पत्राचार होने के बावजूद निकाय की स्थापना को लेकर कोई निर्णय नहीं हुआ। बाद में यह विषय भारत में उच्च सिविल सेवाओं पर बने रॉयल आयोग (जिसे ली आयोग भी कहते हैं) को भेज दिया गया।

ली आयोग आयोग किससे संबंधित है

ली आयोग ने, 1924 में अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश की कि भारत सरकार अधिनियम, 1919 के अंतर्गत विचार किए गए सांविधिक लोक सेवा आयोग की स्थापना बिना किसी देरी के की जाए । भारत सरकार अधिनियम, 1919 की धारा 96 (सी) के प्रावधानों तथा लोक सेवा आयोग की जल्द स्थापना को लेकर ली आयोग द्वारा 1924 में की गई जोरदार सिफारिशों के बाद भी 
भारत में पहली बार लोक सेवा आयोग की स्थापना 1 अक्तूबर, 1926 को की गई । इसमें अध्यक्ष के अतिरिक्त 4 सदस्य भी थे । यूनाइटिड किंग्डम के गृह सिविल सेवा के एक सदस्य, सर रॉस बार्कर आयोग के प्रथम अध्यक्ष बने
भारत सरकार अधिनियम, 1919 में लोक सेवा आयोग के कार्यों का उल्लेख नहीं था, परंतु इसके कार्य भारत सरकार अधिनियम, 1919 की धारा 96(सी) की उपधारा (2) के अंतर्गत बनाई गई लोक सेवा आयोग (प्रकार्य) नियमावली, 1926 द्वारा विनियमित थे । इसके अतिरिक्त, भारत सरकार अधिनियम, 1935 में फेडरेशन के लिए लोक सेवा आयोग तथा प्रत्येकप्रांत अथवा प्रांतों के समूहों के लिए प्रांतीय लोक सेवा आयोग पर विचार किया गया। अतः, भारत सरकार अधिनियम, 1935 के प्रावधानों के अनुसार 1 अप्रैल, 1937 से प्रभावी होने के साथ ही लोक सेवा आयोग, फेडरल लोक सेवा आयोग बन गया ।
26 जनवरी, 1950 को भारत के संविधान के प्रारंभन के साथ ही संविधान के अनुच्छेद 378 के खंड (1) के आधार पर फेडरल लोक सेवा आयोग, संघ लोक सेवा आयोग के रूप में पहचाना जाने लगा तथा फेडरल लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्य संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्य बन गए।

संघ लोक सेवा आयोग के कार्य

संविधान के अनुच्छेद 320 के अंतर्गत, अन्य बातों के साथ-साथ सिविल सेवाओं तथा पदों के लिए भर्ती संबंधी सभी मामलों में आयोग का परामर्श लिया जाना अनिवार्य होता है। संविधान के अनुच्छेद 320 के अंतर्गत आयोग के प्रकार्य इस प्रकार हैं –

  1. संघ के लिए सेवाओं में नियुक्ति हेतु परीक्षा आयोजित करना
  2. साक्षात्कार द्वारा चयन से सीधी भर्ती
  3. प्रोन्नति / प्रतिनियुक्ति / आमेलन द्वारा अधिकारियों की नियुक्ति
  4. सरकार के अधीन विभिन्न सेवाओं तथा पदों के लिए भर्ती नियम तैयार करना तथा उनमें संशोधन
  5. विभिन्न सिविल सेवाओं से संबंधित अनुशासनिक मामले
  6. भारत के राष्ट्रपति द्वारा आयोग को प्रेषित किसी भी मामले में सरकार को परामर्श देना

इसके अतिरिक्त राज्य लोक सेवा के अधिकारियों को संघ लोक सेवा से अधिकारी के रूप में भर्ती करना, भर्ती के नियम बनाना, विभागीय पदोन्नति समितियों का आयोजन करना, भारत के राष्ट्रपति द्वारा निर्दिष्ट कोई अन्य मामला सुलझाना इत्यादि इसके प्रमुख कार्य हैं।

संघ लोक सेवा आयोग के सदस्‍य एवं अध्‍यक्ष की नियुक्ति, त्यागपत्र

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 312 (Article 312) के अनुसार, संसद को संघ और राज्यों के लिये  एक या एक से अधिक अखिल भारतीय सेवाएंँ (एक अखिल भारतीय न्यायिक सेवा सहित) बनाने का अधिकार प्राप्त है। 

सदस्यों की नियुक्ति:- UPSC के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।


कार्यालय:- UPSC का कोई भी सदस्य छह साल की अवधि के लिये या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, पद पर रहेगा।


पुनर्नियुक्ति: कोई भी व्यक्ति जो एक बार लोक सेवा आयोग के सदस्य के रूप में पद धारण कर चुका है अपने कार्यालय में पुनर्नियुक्ति का पात्र नहीं होगा।


त्यागपत्र:- संघ लोक सेवा आयोग का कोई सदस्य भारत के राष्ट्रपति को लिखित त्यागपत्र देकर अपने पद से इस्तीफा दे सकता है।
सदस्यों का निष्कासन/निलंबन: संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य को भारत के राष्ट्रपति के आदेश से ही उसके पद से हटाया जाएगा। राष्ट्रपति अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य को उसके कार्यालय पूर्ण होने से पूर्व भी निलंबित कर सकता है, जिसके संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का संदर्भ दिया गया है।

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