रस हिंदी काव्यशास्त्र का मुख्य भाग है. रस किसे कहते है? रस के भेद और रस के अंग कितने होते है. रस अध्याय से परीक्षा में प्रश्न पूछे जाते है. इसलिए आज के इस लेख में रस को उदाहरण सहित विस्तार में बताया गया है. रस के बारे में अच्छे से जानने के लिए पूरी पोस्ट को नीचे तक पढ़ें.
रस किसे कहते है – रस शब्द एक आत्मानुभूति शब्द है। जिसका अर्थ होता है- आनंद, प्रसंन्नता। रस का सर्वागीण विवेचन सबसे पहले आचार्य भरत ने ‘नाट्यशास्त्र‘ में किया था| यह पहली सदी का ग्रंथ है इसलिये इन्हें रस संप्रदाय का प्रवर्तक माना जाता है। रस संप्रदाय के प्रतिष्पाठक आचार्य मम्मट ने 11 वी सदी में काव्यानंद को ब्रहमानंद सहोदर कहा। जिसका सीधा अर्थ है आनंद ही ब्रह्मा है। रस संप्रदाय के ही आचार्य आनंद विश्वनाथ ने रस को काव्य की कसौटी माना था लेकिन हिंदी के रसवादी आलोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने रस को अलौकिक न मानकर लौकिक माना है।
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रस किसे कहते है? परिभाषा
काव्य शास्त्र को पढ़ने, नाटकादि को देखने से जो आनंद की प्राप्ति होती है उसे रस कहा जाता है। अर्थात विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।
रस के चार अंग है –
- स्थाई भाव
- विभाव
- अनुभाव
- संचारी भाव / व्यभिचारी भाव
1. स्थाई भाव किसे कहते है?
हृदय में मूल रूप से विद्यमान रहने वाले भावों को स्थाई भाव कहा जाता है। यह चिरकाल तक रहने वाले तथा रस रूप में सृजित या परिणत होते है सामान्यत: स्थाई भाव का मतलब प्रधान भाव होता है। प्रधान भाव वही हो सकता है जो रस की अवस्था तक पहुंचता है। काव्य या नाटयशास्त्र में एक स्थाई भाव शुरू से प्रारंभ होकर अंत तक विद्यमान रहता है। स्थाई भावों की संख्या 9 मानी गयी है, जिन्हें नवरस कहा गया है| रसों की संख्या सामान्यत: 9 ही मानी गयी है बाद में आचार्यो ने दो और भावों को स्थाई भाव की मान्यता दी थी। इस प्रकार स्थाई भावों की संख्या 11 हो गयी थी।
रस एवं उनके स्थाई भाव –
रस | स्थाई भाव |
---|---|
1. श्रृंगार रस | रति / प्रेम |
2. हास्य रस | हास |
3. करुण रस | शोक |
4. वीर रस | उत्साह |
5. रौद्र रस | क्रोध |
6. भयानक रस | भय |
7. वीभत्स रस | जुगुप्सा / घ्रणा |
8. अदभुत रस | विस्मय / या आश्चर्य |
9. शांत रस | शम / निर्वेद / वैराग्य / वीतराग |
10.वत्सल रस | वात्सल रति |
11. भक्ति रस | रति / अनुराग |
2. विभाव किसे कहते है?
जो व्यक्ति या वस्तुएं या परिस्थितियां स्थाई भावों को उद्वीपन या जागृत करती है, उन्हें विभाव कहा जाता है। स्थाई भावों के उद्धबोधक कारकों को विभाव कहा जाता है।
विभाव दो प्रकार के होते है –
(1) आलंबन विभाव
(2) उद्वीपन विभाव
(I) आलंबन विभाव किसे कहते है?
आलंबन विभाव का अर्थ होता है – ‘सहारा’, जिस वस्तु या व्यक्ति का सहारा लेकर स्थाई भाव जागते है उसे आलंबन कहा जाता है।
आलंबन विभाव दो प्रकार के होते है- (1) आश्रयालंबन (2) बिषयालंबन।
आश्रयालंबन वह होता है जिसके मन में भाव जागृत होते है। जबकि विषया आलंबन वह होता है, जिसके कारण भाव जागृत होते है।
जैसे – सीता को देखकर राम प्रसन्न हुये। यहाँ पर राम आश्रय आलंबन है जबकि सीता विषया आलंबन है। राम के हृदय में सीता को देखकर प्रसन्नता आयी है।
(II) उद्वीपन विभाव किसे कहते है?
आश्रय के मन मे भावों को उद्वीपन करेन वाली विषय की बाहय चेष्टाओं और बाहय वातावरण को उद्वीपन विभाव कहा जाता है।
जैसे – ‘शकुंतला को वन में देखकर दुष्यंत के मन में भाव जागृत हुआ। इस वाक्य में शकुंतला विषया आलंबन है जबकि दुष्यंत आश्रय आलंबन है। लेकिन एकांत वन उद्वीपन विभाव है।
3. अनुभाव किसे कहते है?
आलंबन या उद्वीपन के द्वारा आश्रय के मन में जो भाव जाग्रत होते है। उन्हें अनुभाव कहा जाता है। सामान्यत: हिंदी भाषा में मनोगत भाव को व्यक्त करने वाली शारीरिक विकार अनुभाव कहलाते है।
अनुभाव के आठ भेद बताये गये है-
(1) स्थंभ | (5) कम्प |
(2) स्वेद | (6) विवर्णता |
(3) रोमांच | (7) अश्रु |
(4) स्वर भंग | (8) प्रलय |
4. संचारी भाव किसे कहते है?
आश्रय के चित्त में उत्पन्न होने वाले अस्थिर मनोविकारों को संचारी भाव कहा जाता है। इन संचारी भावों को व्यभिचारी भाव भी कहा जाता है। इनके द्वारा स्थाई भाव तीव्र हो जाते है।
संचारी भावों की संख्या 33 मानी गयी है-
(1) हर्ष | (18) निर्वेद |
(2) विषाद | (19) धृति |
(3) त्रास | (20) मति |
(4) लज्जा | (21) विवोध |
(5) ग्लानि | (22) चितर्क |
(6) चिंता | (23) श्रम |
(7) शंका | (24) आलस्य |
(8) असुया | (25) निद्रा |
(9) अमर्ष | (26) स्वप्न |
(10) मोह | (27) स्मृति |
(11) गर्व | (28) मन |
(12) उत्सुकता | (29) उनमाद |
(13) उग्रता | (30) अविथ्या |
(14) चपलता | (31) अपस्मार |
(15) दीनता | (32) व्याधि |
(16) जडता | (33) मरण |
(17) आवेग |
संचारी भाव कम समय के लिये स्थिर रहते है। उसके बाद स्वयं ही समाप्त हो जाते है ।
रस के प्रकार –
- श्रृंगार रस
- हास्य रस
- करुण रस
- वीर रस
- रौद्र रस
- भयानक रस
- वीभत्स रस
- अद्भुत रस
- शांत रस
- वात्सल्य रस
- भक्ति रस
1. श्रृंगार रस किसे कहते है? –
आचार्य भोज राज ने श्रंगार रस को रस राज कहा है। शृंगार रस का आधार पुरुष और स्त्री के पारंपरिक आकर्षण है। जिसे काव्य शास्त्र में रति कहा जाता है।
श्रृंगार रस को दो भागों में बांटा गया है- (1) संयोग श्रृंगार (2) वियोग श्रृंगार संयोग श्रृंगार में मिलन के साथ आकर्षण होता है। जबकि वियोग श्रृंगार में अलगाव के साथ आकर्षण होता है। जैसे – चितवत चकित चहूँ दिसि सीता। कह गये नृप किसोर मन चीता। - संयोग श्रृंगार जैसे – निसदिन बरसत नयन हमारे। सदा रहित पावस ऋत हम पे जब ते श्याम सिधारे - वियोग श्रंगार
2. हास्य रस किसे कहते है?
आचार्य भरत ने हास्य रस के मूल में विकृति का भाव माना है। किसी भेष भूषा या क्रियाकलाप, वाणी देखकर या सुनकर मन में उल्लास उत्पन्न होता है। उसे हास्य रस कहा जाता है।
जैसे – जेंहि दिस बैठे नारद फूली।
सो दिस तेहिं न विलोकी भूली ।। – हास्य रस
3. करुण रस किसे है?
भवभूति ने करुण रस को ही एक मात्र रस माना है इस रस के अनुसार दुख की संवेदना बड़ी तीव्र और गहरी होती है।
जैसे – सोक विकल सव रोबहिं रानी ।
रूप सीलु बल तेज बखानी ।। – करुण रस
4. वीर रस किसे कहते है?
जीवन मे वीरता पूर्वक कार्यो का बड़ा महत्व होता है। इसके तीन भेद होते है। दानवीर, धर्मवीर, युद्ध वीर। इस रस से वीरता की अनुभूति होती है। इससे उत्साह जागृत होता है।
जैसे – मैं सत्य कहता हूँ सखे, सुकुमार मत जानों मुझे ।
यमराज से भी युद्ध में प्रस्तुत सदा जानों मुझे ।। – वीर
5. रौद्र रस किसे कहते है?
विरोधी पक्ष द्वारा किसी व्यक्ति देश समाज, या धर्म का अपमान या अपकार करने की प्रतिक्रिया में जो क्रोध उत्पन्न होता है उसे रौद्र रस कहा जाता है।
जैसे – वीर तुम बडे चलो, धीर तुम बडे चलो ।
तुम कभी रुको नहीं तुम कभी झुकों नहीं ।।
6. भयानक रस किसे कहते है? –
भय युक्त वस्तु या घटना देखने या सुनने के बाद भय का संचार होता है उसे भयानक रस कहा जाता है।
जैसे – एक ओर अजगरहि लखि, एक ओर मृगराय ।
विकल बटोही बीच ही, परायो मुर्छा खाये ।। – भयानक
7. वीभत्स रस किसे कहते है? –
वह वस्तु या व्यक्ति जिससे घृणा का भाव जाग्रत होता है। उसे वीभत्स रस कहा जाता है।
जैसे – सिर पर बैठयो काग ऑंख दोउ खात निकारत ।
खींचत जीभहिं स्यार अतिहिं आनंद उर धारत ।।
8. अदभुत रस किसे कहते है?
आश्चर्यजनक वस्तु को देखकर साहस विश्वास नहीं होता है। मन में विस्मय उत्पन्न होता है वहां पर अद्भुत रस होता है।
जैसे – अखिल भुवन चर-अचर सब, हरि मुख में लखि मातु
चकित भई गद गद वचन, विकसित दृग पुलकातु ।।
9. शांत रस किसे कहते है?
संसार और जीवन की नश्वरता का बोध होने से चित्त में एक प्रकार का विराग उत्पन्न होता है। जिससे मनुष्य भौतिक और लौकिक वस्तुओं के प्रति उदासीन हो जाता है। जिससे उसके मन में शांत रस (Shant Ras) की परिणति हो जाती है ।
जैसे – मन रे तन कागद का पुतला ।
लागै बूंद बिनसि जाये छिन में, गरब करै क्यों इतना ।। – शांत रस
10. वत्सल रस किसे कहते है?
वत्सल रस को अनेक आचार्यो ने श्रृंगार रस में समाहित किया है। इसमें वात्सल्य की परिकलपना की जाती हैओ। विश्व नाथ आनंद ने इसे स्वतंत्र रस माना है
जैसे – किलकत कान्ह घुटरुवन आवत।
मनिमय कनक नंद के आंगन बिम्ब पकरिवे घावत । – वत्सल रस
11. भक्ति रस किसे कहते है?
भक्ति रस शांत रस से भिन्न है। इसमें ईश्वर बिषयक रति की ओर आकर्षित करता है। जबकि शांत रस निर्वेद या शम की ओर आकर्षित करता है। भक्ति भावना को मानव संस्कार माना जाता है।
जैसे – मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों न कोई ।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई ।। – भक्ति रस
रस से सम्बंधित तथ्य :-
- बाल कांण्ड में वात्सल्य रस को प्रमुख उदाहरण बताया गया है।
- अभिनव गुप्ता ने शांत रस को प्रमुख रस माना है।
- आचार्य भरत मुनि ने नाटकीय महत्व को देखते हुये रसों की संख्या आठ मानी है।
- श्रृंगार रस को रसपति कहा जाता है।
- रस का पहला प्रयोग नाटय शास्त्र में किया गया था।
- राम चंद्र शुक्ल ने रस को हृदय की मुक्त अवस्था माना है।
- “वाक्य रसात्मक काव्यंम” के उदवक्ता आचार्य विश्वनाथ आनंद ।
- श्रंगार रस के दायरे में भक्ति रस और वात्सल रस आते है।
- रस को काव्य की आत्मा और प्राण तत्व माना है।
- तैतरीय उपनिषद मे रस को रसो वै स: कहा गया है।
- मन मे संचरण करने पर ही रस की उत्त्पति होती है।
हिंदी काव्यशास्त्र में रस किसे कहते है? को इस लेख के माध्यम से हिंदी व्याकरण के सभी रसों को विस्तार से समझाया गया है| आपको Ras in Hindi की हमारी ये पोस्ट कैसी लगी कमेंट करके अपनी राय जरूर बताएं|
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