जैन धर्म तीर्थंकर, महावीर के पांच अणुव्रत, त्रिरत्‍न, महासभा, जैन  धर्म के संस्‍थाक है

Jain Dharm जैन धर्म

Jain Dharm: जैन शब्‍द संस्‍कृत के ‘जिन’ शब्‍द से बना है जिसका अर्थ विजेता है। जैन संस्‍थापाकों को ‘तीर्थकर’ जबकि जैन महात्‍माओं को ‘निर्ग्रथ’ कहा गया है।

जैन धर्म के कुल 24 तीर्थकर माने जाते हैं, जिन्‍हों ने समय-समय पर जैन धर्म का प्रचार-प्रसार किया।

जैन धर्म के तीर्थंकर Jain Dharm ke Tirthankara

ऋषभदेव, अजितनाथ, संभवनाथ, अभिनंदन, सुमतिनाथ, पद्मप्रभ, सुपार्श्‍वनाथ, चंद्रप्रभ, पुष्‍पदंत(सुविधिनाथ), शीतलनाथ, श्रेयासनाथ, वासुपूज्‍य, विमलनाथ, अनंतनाथ, धर्मनाथ, शांतिनाथ, कुंथुनाथ, अरनाथ, मल्लिनाथ, मुनिसुव्रत, नमिनाथ, नेमिनाथ(अरिष्‍टनेमि), पार्श्‍वनाथ, महावीर स्‍वामी

जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव थे जिन्‍हें ऋषभनाथ, आदिनाथ, वृषभनाथ आदि नामो से भी जाना जाता है, ऋषभदेव एवं अरिष्‍टनेमि का उल्‍लेख ऋग्‍वेद में भी मिलता है

पार्श्‍वनाथ जैन धर्म के 23 वे तीर्थंकर माने जाते हैं इनका जन्‍म काशी (वाराणसी) में हुआ था। इनके पिता का नाम अश्‍वसेन काशी के राजा थे। आर्श्‍वनाथ को वाराणसी के निकट आश्रमपद उद्यान में ज्ञान प्राप्‍त हुआ था और उनका परिनिर्वाण सम्‍मेतशिखर(सम्‍मेद पर्वत) पर हुआ था। पार्श्‍वनाथ ने अपने अनुयायियों को चतुर्याम शिक्षा का पालन करने को कहा था। ये चार शिक्षाएं थीं – सत्‍य, अहिंसा, अस्‍तेय एवं अपरिग्रह।

महावीर स्‍वामी

जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे जिनका जन्‍म कुंडलग्राम या कुंडलपुर में लगभग 599 ई.पू. में हुआ था। इनके पिता सिद्धार्थ ज्ञतृक क्षत्रियों के संघ के प्रधान थे। इनकी माता त्रिशला अथवा विदेहदत्ता वैशाली के लिच्‍छवी गणराज्‍य के प्रमुख चेटक की बहन थीं। महावीर स्‍वामी के बचपन का नाम वर्द्धमान था। इनकी पत्‍नी का नाम यशोदा(कुंडिन्‍य गोत्र की कन्‍या) था। इससे उन्‍हें अणोज्‍जा(प्रियदर्शना) नामक पुत्री उत्‍पन्‍न हुई। इसका विवाह जमालि के साथ हुआ था।

जैन  धर्म में ‘पूर्ण ज्ञान’ के लिए ‘कैवल्‍य’ शब्‍द का प्रयोग किया गया है। महावीर स्‍वामी को 12 वर्षों की कठोर तपस्‍या तथा साधना के पश्‍चात ‘जृम्भिकाग्रम’ के समीप ऋजुपालिका नदी के तट पर एक साल वृक्ष के नीचे कैवल्‍य(पूर्णज्ञान) प्राप्‍त हुआ था। ज्ञान प्राप्ति के पश्‍चात वे केवलिन, अर्हत (योग्‍य), जिन(विजेता), तथा निर्ग्रंथ(बंधन रहित) कहलाए। कैवल्‍य प्राप्ति के पश्‍चात महावीर स्‍वामी कने अपने सिद्धांतों का प्रचार प्रारंभ किया।

महावीर स्‍वामी को उनके प्रथम शिष्‍य जमालि से मतभेद हो गया मतभेद होने का कारण क्रियमाणकृत सिद्धांत (कार्य करते ही पूर्ण हो जाना) था। इस मतभेद के कारण जमालि ने संघ छोड़ दिया और एक नए सिद्धांत बहुरतवाद (कार्य पूर्ण होने पर ही पूर्ण माना जाएगा) का प्रतिपादन किया।

दूसरा विद्रोह जमालि के विद्रोह के दो वर्ष बाद तीसगुप्‍त ने किया था। मक्‍खलिगोसाल ने आजीवक संप्रदाय की स्‍थापना की। इनका मत ‘नियतिवाद’ कहा जाता है।

महावीर स्‍वामी ने पंच महाव्रत की शिक्षा दी जो इस प्रकार है- अहिंसा, सत्‍य, अस्‍तेय, अपरिग्रह एवं ब्रम्‍हचर्य।

प्रथम चार व्रत पाश्‍र्वनाथ के समय ही प्रचलित थे। महावीर ने पांचवां व्रत ब्रम्‍हचर्य को जोड़ा था।

महावीर के पांच अणुव्रत

अहिंसाणुव्रत, सत्‍याणुव्रत, अस्‍तेयाणुव्रत, बगम्‍हचर्यणुव्रत ओर अपरिग्रहाणुव्रत।

उन्‍होंने आत्‍मवादियों तथा नास्तिकों के एकांतिक मतों को छोड़कर बीच का मार्ग अपनाया, जिसे ‘अनेकांतवाद’ अथवा ‘स्‍यादवाद’ कहा गया। स्‍यादवाद को सप्‍तभंगी नय के नाम से भ जाना जाता है। यह ज्ञान की सापेक्षता का सिद्धांत है। महावीर स्‍वामी पुनर्जन्‍म एवं कर्मवाद में विश्‍वास करते थे, किंतु ईश्‍वर के अस्तित्‍व में उनका विश्‍वास नहीं था।

प्रमुख जैन तीर्थंकर एवं उनके प्रतीक चिन्‍ह

ऋषभदेव – बैल

अजितनाथ – हाथी

संभनाथ – अश्‍व

पद्मप्रभ –  कमल

सुपार्श्‍वनाथ – साथिया(स्‍वास्तिक)

मल्लिनाथ – कलश

नमिनाथ – नीलकमल

नेमिनाथ – शंख

पार्श्‍वनाथ – सर्प

महावीर स्‍वामी – सिंह

जैन धर्म के त्रिरत्‍न

  • सम्‍यक् दर्शन , सम्‍यक् ज्ञान, सम्‍यक चरित्र
  • त्रिरत्‍नों का अनुसरण करने से कर्मों का जीव की ओर प्रवाह रुक जाता है, जिसे ‘संवर’ कहते हैं।
  • इसके बाद जीव के पहले से व्‍याप्‍त कर्म समाप्‍ह होने लगते हैं, इसे ‘निर्जरा’ कहा जाता है। जब जीव में कर्म का अवशेष पूर्ण समाप्‍त हो जाता है, जब वह मोक्ष प्राप्‍त कर लेता है।
  • जैन धर्म में ‘अनंत चतुष्‍ट्य’ है – अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत वीर्य तथा अनंत सुख।
  • जैन धर्म के 11 अनुयायी थे जिन्‍हें गणधर कहा जाता है, जो निम्‍न हैं – इंद्रभूति, अग्‍निभूति, वायुभूति, आर्य व्‍यक्‍त, सुधर्मन, मंडित, मौर्यपूत्र, अकंपित, अचलभ्राता, मेतार्य तथा प्रभास।

प्रमुख जैन महासभा Jain Dharm ki mahasbha

क्रमांक समय स्‍थान अध्‍यक्ष
प्रथम जैन सभा310ई.पू.पाटलिपुत्रस्‍थूलभद्र
द्वितीय जैन सभाछठीं शताब्‍दी(512 ई.)वल्‍लभी(गुजरात)देवर्धिगण या क्षमाश्रमण

प्रमुख जैन ग्रंथ एवं उनके रचनाकार

  • कल्पसूत्र के लेखक कौन है – भद्रबाहु
  • परिशिष्ट पर्व के रचयिता कौन है – हेमचंद्र
  • स्‍यादवादमंजरी लेखक कौन है – मल्लिसेन
  • द्रव्य संग्रह के लेखक कौन हैं? – नेमिचंद्र
  • न्‍यायावतार के लेखक कौन हैं? – सिद्धसेन दिवाकर
  • तत्‍वार्थ सूत्र के लेखक कौन हैं? – उमास्‍वामी
  • न्‍याय दीपिका के लेखक कौन हैं? – धर्मभूषण
  • श्‍लोक वर्तिक के लेखक कौन हैं? – विद्यानंद स्‍वामी
  • पंचविंशतिका के लेखक कौन हैं? – पद्मनंदि
  • प्रवचनसार – कुन्‍दकुन्‍द
  • जैनों साहित्‍य में अशोक के पौत्र संप्रति को जैन मत का संरक्षक बताया गया है।

जैन धर्म से संबंधित परीक्षाओं में पूछे जाने वाले प्रश्‍न

  • जैन  धर्म के संस्‍थाक है – ऋषभदेव
  • संस्‍थापक या प्रवर्तक प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव या आदिनाथ माने जाते हैं। महावीर स्‍वामी जैनधर्म के 24 वें तीर्थंकर थे, जिन्‍होंने छठीं शताब्‍दी ई.पू. में जैन धर्म का प्रसार किया।
  • जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर कौन थे – ऋषभदेव
  • ‘तीर्थंकर’ पार्श्‍वनाथ का जन्‍म कहां हुआ था – वाराणसी
  • महावीर स्‍वामी का जन्‍म कहां हुआ था – कुंडलग्राम
  • महावीर स्‍वमी का जन्‍म कुंडलग्राम में (वैशाली के निकट) लगभग 599 ई.पू. में हुआ था।
  • तीर्थंकर शब्‍द संबंधित है – जैनो सें
  • जैन तीर्थंकरों के क्रम में अंतिम कौन था- महावीर
  • प्रभासगिरि जिनका तीर्थ स्‍थल है, वे हैं – जैन
  • जैन  धर्म में पूर्ण ज्ञान के लिए क्‍या शब्‍द है – कैवल्‍य
  • महावीर स्‍वामी को किस नदी के तट पर ज्ञानोदय प्राप्‍त हुआ – ऋजुपालिका नदी
  • कौन-सा दर्शन त्रिरत्‍न को मानता है – जैन दर्शन(सम्‍यक् दर्शन, सम्‍यक् ज्ञान एवं सम्‍यक् चरित्र , बौद्ध दर्शन (बुद्ध, धम्‍म, एवं संघ)
  • अणुव्रत सिद्धांत का प्रतिपादन किसने किया – जैन धर्म ने
  • साम्‍यवाद सिद्धांत है – जैन धर्म का
  • अनेकांत वाद किसका क्रोड सिद्धांत है – जैन मत का
  • जैन धर्म का आधारभूत बिंदु है – अहिंसा
  • यापनीय किसका संप्रदया था – जैन धर्म का
  • महावीर का प्रथम अनुयायी कौन था- जमालि
  • किस जैन सभा में अंतिम रूप से श्‍वोतांबर आगम का संपादन हुआ – पाटलिपुत्र
  • समाधि मारण किस दर्शन से संबंधित है – जैन दर्शन से
  • आजीवक संप्रदाय के संस्‍थापक थे – मक्‍खलिगोसाल
  • श्रवणबेलगोला में गोमतेश्‍वर की विशाल प्रतिमा किसने स्‍थापित करवाई थी – चामुंडराय ने

प्राचीन भारतीय समाज के प्रसंग में, निम्नलिखित शब्दों में से
कौन-सा शब्द शेष तीन के वर्ग का नहीं है?

(a) कुल
(b) वंश
(c) कोश
(d) गोत्र
उत्तर-(c)
प्राचीन भारतीय समाज के संदर्भ में कुल, वंश तथा गोत्र परिवार से संबंधित हैं, जबकि कोश परिवार से संबंधित न होकर भंडार से संबंधित है।

संस्कारों की कुल संख्या कितनी है?

(a) 10
(b)12
(c) 15
(d) 16 एमपी। पी.सी.एस. (पूर्व) 2015
उत्तर-(d)
‘संस्कार’ का शाब्दिक अर्थ है-परिष्कार, शुद्धता अथवा पवित्रता। गौतम धर्मसूत्र में इसकी संख्या चालीस (40) मिलती है। मनु ने गर्भाधान से मृत्यु-पर्यंत तेरह संस्कारों का उल्लेख किया है। बाद की स्मृतियों में इनकी संख्या सोलह (16) स्वीकार किया गया। आज यही सर्वप्रचलित है।

जीविकोपार्जन हेतु ‘वेद-वेदांग’ पढ़ाने वाला अध्यापक कहलाता था-

(a) आचार्य
(बी) अध्वर्यु
(सी) उपाध्याय
(d) पुरोहित उत्तराखंड यू.डी.ए./ एल.डी.ए. (मेन्स) 2007
उत्तर-(c)
वैदिक काल में जीविकोपार्जन हेतु ‘वेद वेदांग’ पढ़ाने वाला अध्यापक उपाध्याय कहलाता था। आचार्य गुरुकुल की स्थापना करके अपने शिष्यों को पढ़ाता था तथा कोई फीस नहीं लेता था, किंतु शिष्य के द्वारा दी गई दक्षिणा स्वीकार कर लेता था।

बौद्ध धर्म || Baudh Dharm

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