अव्यय किसे कहते है – अव्यय का शाब्दिक अर्थ है – अ+व्यय; जो व्यय न हो, उसे अव्यय कहा जाता है। सामान्यत: ऐसा शब्द जिसमें कोई परिवर्तन न हो उस शब्द को अविकारी शब्द कहा जाता है। इसलिये इसमें किसी प्रकार का विकार नहीं होता है अर्थात जिसके अकार में कोई भी अस्थिरता न हो सदैव स्थिरता का पालन करे। इस कारण यह अपरिवर्तित रहता है। इन सभी आधारों पर एसे शब्दों को अविकारी, अपरिवर्तित, अव्यय नाम दिया जाता है। इनका मूल स्वरूप स्थिर रहता है। कभी नहीं बदलता है। अव्यय ज्यों की त्यों ही रहता है। जैसे – जब, कहाँ, अभी, जब आदि|
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अव्यय किसे कहते है? परिभाषा
परिभाषा – जिन शब्दों के रूप में लिंग, वचन, कारक पुरुष आदि के कारण कोई परिवर्तन नहीं होता है उसे अव्यय शब्द कहा जाता है।
मोहित भटटाचार्य के अनुसार – वे शब्द जो तीनों लिंगों में सभी विभक्तियों में और सभी वचनों में सामन रहै। उसे अव्यय कहा जाता है।
उदाहरण – (1). जब मैं जाऊँगा तब वह आयेगा।
(2). जब मैं जाऊँगी तब वह आयेगी।
(3). राम और श्याम सहोदर भाई है।
(4). सीता और गीता सहोदर बहने है।
प्रथम और द्वितीय वाक्य में ‘जब’ और ‘तब’ अव्यय है। क्योंकि इन दोनों वाक्यों में कर्ता का लिंग परिवर्तित हुआ है। लेकिन अव्यय ‘जब’ और ‘तब’ पर को परिवर्तन नहीं हुआ है। वह प्रथम और द्वितीय वाक्य में समान है। इसी प्रकार तृतीय और चतुर्थ वाक्य में ‘और‘ शब्द अव्यय है।
अव्यय के उदाहरण
- घोडा तेज दौड़ता है।
- अब खाना बंद करो।
- बच्चे धीरे-धीरे चल रहे थे।
- श्याम प्रतिदिन खेलने जाता है।
- वह वहां रखा है।
- राम प्रतिदिन पढ़ता है।
- सीता सुंदर दिखती है।
- वह बहुत थक गया है।
- मैं अपना काम कर रहा हूँ|
- मनोज नित्य नहाता है।
- वे कब गए।
- सीमा कल जाएगी।
- वह प्रतिदिन पढ़ता है|
- मैं कहाँ जाऊं ?
- मीरा कहाँ गई ?
- नीकेश नीचे बैठा है।
- इधर -उधर मत जाओ।
- वे आगे चले गए।
- वहां शाम के बाद मत जाना।
- सोनू के पास घड़ी है।
- राहुल कल दफ्तर गया था।
- परसो राम अमेरिका जाएगा।
अन्य अव्यय ‘आज, ‘अत:, ‘इसलिये’, ‘अभी’, ‘किंतु’, ‘परन्तु’, ‘जहां’, ‘वहां’ आदि| अव्यय शब्द किसी अन्य शब्द में लगकर उस शब्द को भी अव्यय बना देते है । जैसे – प्रतिदिन, भर पेट, यथा शक्ति, आदि|
अव्यय के भेद
अव्यय के चार पांच भेद है –
- क्रिया विशेषण अव्यय
- संबंध बोधक अव्यय
- समुच्चय बोधक अव्यय
- विस्मयादिबोधक अव्यय
- निपात अव्यय
1. क्रिया विशेषण अव्यय किसे कहते है?
जो शब्द क्रिया के अर्थ में विशेषता प्रकट करते हैं। या क्रिया की विशेषता बतलाते है उन्हैं क्रिया विशेषण कहा जाता है। इस क्रिया विशेषण को अविकारी विशेषण कहा जाता है।
जैसे – धीरे चलो।
इस वाक्य में ‘धीरे’ शब्द क्रिया ‘चलों’ की विशेषता बता रहा है कि कैसे चलो तो उसका जबाव है – ‘धीरे’| इस प्रकार ‘धीरे’ शब्द को क्रिया विशेषण माना जायेगा।
इसी प्रकार एक क्रिया विशेषण दूसरे क्रिया विशेषण की भी विशेषता बतलाता है । जैसे – वह बहुत धीरे –धीरे चलता है। इस वाक्य में बहुत क्रिया विशेषण है जो दूसरे क्रिया विशेषण ‘धीरे – धीरे’ की विशेषता बता रहा है। अन्य उदाहरण
- राम धीरे – धीरे पढता है|
- आप कब आए।
- उसके पास अच्छी पुस्तकें पर्याप्त है।
- वह कल अवश्य आयेगा|
क्रिया विशेषण अव्यय के भेद –
क्रिया विशेषण को रूप, प्रयोग, और अर्थ के आधार पर अलग–अलग भागों में बांटा गया है-
रूप के आधार पर – रूप के आधार पर क्रिया विशेषण के तीन भेद है – 1. मूल क्रिया विशेषण 2. यौगिक क्रिया विशेषण 3. कारण क्रिया विशेषण
- मूल क्रिया विशेषण – जो क्रिया विशेषण अन्य किसी शब्द के योग या मेल से नहीं बनते है, उन्हें मूल क्रिया विेशेषण कहा जाता है।
- जैसे – अचानक, पुन:, ठीक, नहीं
- यौगिक क्रिया विशेषण – जो क्रिया विशेषण प्रत्यय या अन्य शब्द के योग से बनते है, उन्हें यौगिक क्रिया विशेषण कहते है।
- जैसे – प्रतिदिन, घर-बाहर, बाहर-भीतर, हरेक, जहॉं-तहाँ इधर – उधर, यथाक्रम
- कारण क्रिया विशेषण – जो शब्द किसी विशेष कारण या उद्वेश्य से प्रयोग किये जाते है, उन्हें कारण विशेषण कहा जाता है।
- जैसे – जाओगे नहीं तो सिर खाओगे।
प्रयोग के आधार पर - प्रयोग के आधार पर क्रिया विशेषण के तीन भेद है- 1. साधारण क्रिया विशेषण 2. अनुबद्ध क्रिया विशेषण 3. संयोजक क्रिया विशेषण
- साधारण क्रिया विशेषण – जिन क्रिया विशेषणों का प्रयोग स्वतंत्र रूप से किया जाये।
- जैसे – आह! मैं क्या करूँ।
- अनुबद्ध क्रिया विशेषण – जिन क्रिया विशेषणों का प्रयोग निश्चिय के लिये किया जाता है।
- जैसे – ये तो बड़ी विचित्र बात है।
- संयोजक क्रिया विशेषण – जिन क्रिया विशेषणों का संबंध किसी अन्य कथन के संयोजन के लिये होता है।
- जैसे – जहाँ न पहुचे रवि, वहॉं पहुंचे कवि।
अर्थ के आधार पर - अर्थ के आधार पर क्रिया विशेषण के चार भेद है- 1. स्थान वाचक क्रिया विशेषण 2. काल वाचक क्रिया विशेषण 3. परिमाण वाचक क्रिया विशेषण 4. रीतिवाचक क्रिया विशेषण
स्थान वाचक क्रिया विशेषण – जिन शब्दों से क्रिया में स्थान दिशा संबंधी विशेषता प्रकट होती है, उन्हें स्थान वाचक क्रिया विशेषण कहा जाता है| जैसे – यहां, वहां, आगे – पीछे
स्थान वाचक क्रिया विशेषण को दो भागों मे बांटा जा सकता है - 1. स्थिति वाचक - यहां, वहां, जहां, तहां, कहां, वही कहीं 2. दिशा वाचक -इधर, उधर, दायं, बाएं, हर जगह, बाहर भीतर, आगे पीछे, ऊपर नीचे, सर्वत्र, अन्यत्र आदि|
काल वाचक क्रिया विशेषण – जिस क्रिया विशेषण से काल या समय की सूचना मिलती है उसे काल वाचक क्रिया विशेषण कहा जाता है।
काल वाचक विशेषण के तीन भेद है - 1. समय वाचक – आज, कल, अभी, तुरंन्त, दोपहर, शाम, सुबह, परसों, आदि 2. अवधि वाचक – रात भर, नित्य, दिन भर, सदा, सर्वदा, सदैव, पहले, पीछे, 3. बारंबारता - हर बार, कई बार, प्रतिदिन, एक बार, दो बार, तीन बार
परिमाण वाचक क्रिया विशेषण – जिस क्रिया विशेषण से परिमाण का बोध होता है अर्थात किसी वस्तु की मात्रा बाताई जाती है। इसे निम्न भागों में बांटा जा सकता है –
- अधिकता बोधक – बहुत, खूब, अत्यंत, अति
- न्यूनता बोधक – जरा, थोडा, किंचित, कुछ
- श्रेणी बोधक – थोडा-थेाडा, तिल-तिल, बारी-बारी
- तुलनात्मक बोधक – कम, अधिक, उतना, इतना, कितना, जितना, ज्यादा
- पर्याप्तिबोधक – बस, काफी, ठीक, केवल
रीतिवाचक क्रिया विशेषण – जिस क्रिया विशेषण से निश्चिय, अनिश्चिय, कारण, निषेध, आदि का बोध होता है, उसे रीति वाचक क्रिया विशेषण कहा जाता है। इसके निम्न भेद है –
- प्रकार – ऐसे, वेसे, कैसे, मानों, अचानक, फटाफट, आप ही आप,
- निश्चिय – निसंदेह, अवश्य, वेशक, सही, सचमुच, जरूर, परस्पर, अलबत्ता,
- स्वीकार – हाँ, हाँ जी,
- कारण – इसलिये, क्यों, काहे,
- अवधारणात्मक – तो, ही, भी मात्र, भर, तक आदि
- निषेध – न, नहीं, गलत, मत, झूठ, मत,
2. संबंध बोधक अव्यय किसे कहते है?
जिन अविकारी शब्दों से संज्ञा या सर्वनाम का संबंध वाक्य के दूसरे शब्दों से प्रकट होता है, उसे संबंधबोधक अव्यय कहा जाता है|
जैसे – मैं गोपाल के बिना नहीं जाऊंगा।
इस वाक्य में बिना शब्द गोपाल और मैं के बीच संबंध स्पष्ट कर रहा है। इसलिये यह संबंध बोधक अव्यय है| संबंध बोधक अव्यय को तीन आधारों पर बांटा जा सकता है ।
(1) प्रयोग के आधार पर
(2) अर्थ के आधार पर
(3) व्युत्पत्ती के आधार पर
प्रयोग के आधार पर - संबंध बोधक अव्यय को प्रयोग के आधार पर तीन भागों में बांटा जा सकता है (1) विभक्ति सहित - जिन अव्यय शब्दों का प्रयोग कारक विभक्तियों के साथ होता है। जैसे - के पास, के लिये, (2) विभक्ति रहित – जिन अव्ययों का प्रयोग बिना कारक विभक्तियों के होता है| जैसे – रहित, सहित (3) अभयविधि - इन अव्ययों का प्रयोग विभक्ति सहित और रहित दोनो प्रकार का होता है। जैसे – द्वारा, बिना
अर्थ के आधार पर संबंध बोधक अव्यय आठ प्रकार के होते है - 1. काल वाचक - जिन अव्ययों से समय का बोध होता है। जैसे – आगे-पीछे, बाद में, पश्चात, उपरांत, इत्यादि । 2. स्थान वाचक - जिन अव्ययों से स्थान का बोध होता है। जैसे – आगे-पीछे, उपर-नीचे, सामने, निकट, भीतर 3. दिशावाचक - जिन अव्यय शब्दों से किसी दिशा को बोध होता है। जैसे - ओर, तरफ, आसपास, प्रति, आर-पार इत्यादि 4. साधन वाचक – जिन अव्ययों से साधन का बोध होता है। जैसे – माध्यम, मार्फत, द्वारा, सहारा, जरिये 5. कारण वाचक - जिन अव्ययों से कारण का बोध हेाता है । जैसे - हेतु, वास्ते, निमित्त, खातिर आदि 6. सादृश्य बोधक - जिन अव्ययों से सामानता को बोध होता है। जैसे – समान, तरह, जैसा, वैसा 7. विरोध वाचक - जिन अव्ययों से प्रतिकूलता या विरोध का बोध होता है। जैसे - प्रतिकूल, विपरीत, उल्टा, 8. सीमा वाचक - जिन अव्यय शब्दों से किसी सीमा का पता चलता है। जैसे – तक, पर्यन्त, भर, मात्र आदि
व्युत्पत्ती के आधार पर संबंध बोधक दो प्रकार के होते है – 1. मूल संबंध बोधक - जो अव्यय जो किसी दूसरे के सहयोग से नहीं बनते है। बल्कि अपने मूल रूप में ही रहते है| जैसे – बिना, समेत, तक 2. यौगिक संबंध बोधक - जो अव्यय क्रिया, विशेषण, संज्ञा के सहयोग से बनते है। जैसे – पर्यन्त = परि+अंत
3. समुच्चय बोधक अव्यय किसे कहते है?
जो अव्यय क्रिया या संज्ञा की विशेषता न बताकर शब्दों वाक्यांशों अथवा वाक्यों को जोडने का कार्य करते है। अर्थात जो अव्यय दो पदो, दो उपवाक्यों, या दो वाक्यों को परस्पर जोडते है, उन्हें समुच्चय बोधक अव्यय कहा जाता है।
जैसे – अखिल और सोहल कॉलेज जाते है। इस वाक्या में ‘और’ शब्द दो पद अखिल और सोहल को जोड रहा है।
समुच्चय बोधक अव्यय के दो भेद होते है। (1) सामनाधिकरण समुच्य बोधक (2) व्याधिकरण समुच्चय बोधक
समानाधिकरण समुच्चय बोधक – जो अव्यय दो या दो से अधिक वाक्यों का संयोजन – वियोजन का कार्य करते है । उन्हें समानाधिकरण समुच्च बोधक कहा जाता है । इसके चार भेद है –
(1) संयोजक – तथा, एवं, और, व, या,
(2) विभाजक – अथवा, या, वा, किंवा, कि, चाहे
(3) विरोध दर्शक – वरना, मगर, किन्तु, परन्तु, लेकिन,
(4) परिमाण दर्शक – अत:, अतएव, इसलिए,
व्याधिकरण समुच्चय बोधक – जो अव्यय मुख्य वाक्य से एक या एक से अधिक आश्रित वाक्यों केा जोडने का कार्य करते है । उन्हें व्याधिकरण समुच्चय कहते है । यह चार प्रकार के होते है ।
(1) कारणवाचक – इसलिए , कि , जो कि , क्योंकि ,
(2) उद्वेश्य वाचक – ताकि , जो , इसलिये , कि ,
(3) संकेत वाचक – यदि तो , जो तो , यद्यपि , तथापि ,
(4) स्वरूपवाचक – अर्थात , मानों , यानि ,कि , जो,
4. विस्मयादिबोधक अव्यय किसे कहते है?
जो अव्यय हर्ष, उल्लास, शेाक, दुख, घृणा, लज्जा, ग्लानि आदि मनोभावों को प्रकट करते है। विस्मयादिबोधक अव्यय कहलाते है। इन अव्ययों का संबंध वाक्यों के किसी पद से नहीं होता है| अपने आप में स्वतंत्र होते है| यह अपने विराम चिन्ह से अलग प्रतीत होते है लेकिन इनका स्पष्ट अर्थ एक वाक्यांश के समान होता है। जिसके आंतरिक भाव का प्रादुभार्व करते है। इससे व्यक्ति के मनो भावों को स्पष्ट भाषा में लिखा और समझा जा सकता है।
जैसे – हाय! वह चल बसा।
वाह! क्या कहना
आह! कितना सुन्दर दृश्य है।
छि: छि:! इतना इतना घृणित व्यवहार है।
अरे! तुम्हें अक्ल नहीं है।
विस्मयदि बोधक अव्यय के भेद
(1) हर्ष बोधक – आह!, वाह! वाह वाह!
(2) शोक बोधक – हाय!, हा! ऊंह! ऊफ!
(3) प्रशंसाबोधक – शाबास! खूब!
(4) संबोधन बोधक – अरे!, रे! अजी! हे! अहो!
(5) तिरस्कार बोधक या घृणा बोधक – राम राम! थू – थू! छि:! हट! दुर!
(6) स्वीकार बोधक – ठीक! हा! अच्छा! बहुत! जी हां!
(7) क्रोध बोधक – अबे! पाजी! अजी! आदि
(8) विनय बोधक – हूँजूर! साहब!
विस्मयादिबोधक अव्यय में विसर्ग और विस्मयदिबोधक विराम चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। जिसके आधार पर भावों को प्रकट किया जाता है| यह विराम चिन्ह इस अव्यय को एक वाक्य के रूप में प्रस्तुत करता है| इसके कारण हम दूसरे व्यक्ति के भावों को भाषा के माध्यम से समझा पाते है। इन सभी शब्दों से उस अव्यय के वाक्य को पूरा किया जाता है। यदि विस्मायादि बोधक पद को पूरा करने के लिये विराम चिन्ह का प्रयोग किया जायेगा| यदि प्रयोग नही होता है तो उसे उपवाक्य की संज्ञा नही दी जायेगी। यह आश्रित वाक्य होता है जो दूसरे वाक्य पर अर्थ के लिये निर्भर होता है। इन विराम चिन्हों केा आंतरिक मनोभाव चिन्ह भी कहा जाता है।
5. निपात अव्यय किसे कहते हैं?
ऐसे अव्यय शब्द जो किसी शब्द के बाद लगकर उसके अर्थ या अभाव में विशेष बल देते हैं, उन्हें निपात अव्यय कहा जाता हैं। शब्दों के बाद में पढ़ने से ही उन्हें निपात कहते हैं। जैसे- ही,भी,तक।
निपात अव्यय के 9 भेद हैं-
- सकारात्मक निपात
- नकारात्मक निपात
- निषेधात्मक निपात
- प्रश्नबोधक निपात
- विस्मयादिबोधक निपात
- बलदायक निपात
- तुलनात्मक निपात
- अवधारणबोधक निपात
- आदरबोधक निपात
संस्कृत के अव्यय
संस्कृत में भी कुछ अव्यय होते हैं| नीचे संस्कृत के अव्यय एवं उनके अर्थ लिखित हैं –
1. शनैः – धीरे
2. अपि – भी
3. वा – या
4. न – नहीं
5. च – और
6. पुनः – फिर
7. कदापि – कभी भी
8. अधुना – अब
9. तदा – तब
10. यदा – जब
11. कदा – कब
12. सदा – हमेशा
13. स्वस्ति – कल्याण हो
14. नमः – नमस्कार
15. कथम् – कैसे
16. सर्वत्र – सब जगह
17. कुत्र – कहां
18. तत्र – वहां
19. अत्र – यहां
20. शीघ्रम् – जल्दी
21. श्वः – आने वाला कल
22. परश्वः – परसों
23. अद्य – आज
24. ह्यः – बीता हुआ कल
25. कुतः – कहाँ से
26. सह – साथ
27. अथवा – या
28. तथा – तैसे
29. यथा – जैसे
30. विना – बिना
31. धिक् – धिक्कार
संस्कृत अव्यय के उदाहरण
- मा गच्छ| – (मत जाओ)
- मिथ्या कथं वदसि| – (झूठ क्यों बोलते हो?)
- पर्यायवरण: सदा स्मरणीय:| (पर्यायवरण का स्मरण सदा करना चाहिए)
- पुरा सर्वत्र धर्म: आसीत्| – (पहले सर्वत्र धर्म था)
- स हि गमिष्यति| – (वह अवश्य जायेगा)